"एक भाई 25 वर्ष की उम्र तक अपने दूसरे भाई के साथ खड़ा रहता है, और 25 वर्ष के बाद अक्सर वही भाई अपने भाई के खिलाफ खड़ा हो जाता है।" - सतीश कुमार शर्मा, 22.11.2022
आगे विस्तार से इस विषय पर अपनी अनुभव से प्रकाश डालने की कोशिश किया गया है।
Satish Kumar Sharma Thought |
भाईचारे की मजबूती: रिश्तों की टूटती दीवारें
हमारे समाज में भाईचारे का रिश्ता अनमोल माना जाता है। एक भाई अपने बचपन में अपने दूसरे भाई का सबसे बड़ा रक्षक, मार्गदर्शक और दोस्त होता है। बचपन में भाई-भाई या भाई-बहन के रिश्ते को जो मजबूती मिलती है, वह किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम होती है, चाहे वह समस्या तूफान जैसा क्यों न हो। लेकिन अफसोस, जैसे-जैसे समय बीतता है, उम्र बढ़ती है, वैवाहिक जीवन में आ जाते है, एक नए सदस्य परिवार के हिस्सा बनते है, यह रिश्ता अक्सर कमजोर पड़ते देखा जाता है।
मैंने इस विषय पर गहराई से चिंतन किया और यह प्रश्न उठाया कि क्यों 25 वर्ष तक एक भाई अपने भाई के साथ खड़ा रहता है, और 25 वर्ष के बाद वही भाई अपने भाई के खिलाफ खड़ा हो जाता है? क्या यह समाज की बदलती संरचना है, हमारी महत्वाकांक्षाएं, या रिश्तों के प्रति बदलता दृष्टिकोण?
भाईचारे का बदलता स्वरूप
जब भाई एक साथ बड़े होते हैं, तो उनके बीच साझा सपने या लक्ष्य और संघर्ष होते हैं। इस अवधि में हमारी प्रथम प्राथमिकता "हम" के लिए होता है। लेकिन जैसे-जैसे जीवन में जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। पैतृक संपत्ति, पारिवारिक अधिकार और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं उनके रिश्तों में दीवार खड़ी करने लगती हैं।
सामान्यतः, यह समस्या तब पैदा होती है जब भाई एक-दूसरे की जगह अपनी महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता देते हैं। बचपन का वह "हम" धीरे-धीरे "मैं" में बदल जाता है। जब भाई जीवन की इस दौड़ में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं, तो वही प्यार और अपनापन प्रतिस्पर्धा और दुश्मनी में बदल जाता है।
समाज को संदेश: रिश्तों को सहेजना जरूरी है
मेरा मानना है कि यह बदलाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसे रोकने के प्रयास भी जरूरी हैं। समाज को यह समझना होगा कि रिश्ते केवल खून के संबंधों से नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और समझ से टिके रहते हैं।
यदि हम अपने भाई-बहनों के साथ ईमानदारी से संवाद करें, एक-दूसरे की समस्याओं को समझें और छोटे-छोटे मतभेदों को दिल से न लगाएं, तो भाईचारे की यह दीवार कभी नहीं टूटेगी। जीवन की दौड़ में रिश्तों को महत्व देना जरूरी है, क्योंकि एक समय आता है जब धन-दौलत और सफलता मायने नहीं रखती; केवल परिवार का साथ ही सुकून देता है।
समस्या का समाधान: मिलकर खड़े रहने की परंपरा
मुझे लगता है कि यदि भाई-बहन जीवन में एक-दूसरे का सहारा बनें, तो समाज में सकारात्मकता का संचार होगा। प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग, और स्वार्थ के स्थान पर सह-अस्तित्व को महत्व देना होगा।
यह सच है कि जीवन की चुनौतियां और जिम्मेदारियां रिश्तों पर असर डालती हैं, लेकिन जब तक हम भाईचारे के महत्व को समझेंगे, तब तक समाज में ये टूटनें खत्म हो सकती हैं।
अंत में, मेरा यही संदेश है कि भाई केवल खून का रिश्ता नहीं है; यह एक जिम्मेदारी है। बचपन के उस प्यार और एकता को 25 वर्ष के बाद या किसी भी अन्य उम्र में बनाए रखना ही सही मायने में भाईचारे का सम्मान है।
— लेखक: सतीश कुमार शर्मा